मातृत्व संक्रमण (Matrescence): माँ बनने के सफर में मानसिक और हार्मोनल परिवर्तन और उनका आयुर्वेदिक समाधान

मातृत्व संक्रमण (Matrescence): माँ बनने पर होने वाले हार्मोनल और मानसिक बदलाव को समझें – आयुर्वेदिक समाधान के साथ

🔰 भूमिका

Matrescence- माँ बनना एक चमत्कारी अनुभव होता है – लेकिन इसके साथ कई अंदरूनी बदलाव भी आते हैं, जिन्हें हम अक्सर नज़रअंदाज़ कर देते हैं।
क्या आपने कभी यह महसूस किया है कि बच्चे के जन्म के बाद आप पहले जैसी नहीं रहीं? मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक रूप से एक अलग यात्रा शुरू हो जाती है – इस परिवर्तन को विज्ञान में कहते हैं “Matrescence” यानी मातृत्व संक्रमण

यह शब्द भले ही नया हो, लेकिन अनुभव हर माँ के लिए सच्चा है। आज हम जानेंगे इस अनदेखे बदलाव के बारे में और जानेंगे कि आयुर्वेद इसे कैसे समझता और ठीक करता है।


🧬 मातृत्व संक्रमण (Matrescence) क्या है?

Matrescence एक ऐसा परिवर्तन है जो एक महिला के माँ बनने के दौरान और उसके बाद होता है – ठीक वैसे ही जैसे किशोरावस्था (Adolescence) में होता है। यह परिवर्तन शारीरिक, मानसिक, हार्मोनल और सामाजिक स्तर पर होता है।

👉 इसका प्रभाव:

  • शरीर की पहचान में बदलाव
  • आत्म-संदेह और आत्म-स्वीकृति की जद्दोजहद
  • भावनात्मक अस्थिरता
  • समाजिक अपेक्षाओं का दबाव

⚠️ हार्मोनल बदलाव जो मातृत्व को प्रभावित करते हैं

1. एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन में गिरावट

बच्चे के जन्म के बाद इन प्रमुख महिला हार्मोनों का स्तर अचानक गिर जाता है, जिससे मूड स्विंग्स, थकान, और उदासी जैसी समस्याएं होती हैं।

2. प्रोलैक्टिन और ऑक्सीटोसिन का बढ़ना

ये हार्मोन माँ को अपने बच्चे से जोड़ते हैं, लेकिन कभी-कभी इनके असंतुलन से अत्यधिक चिंता या इमोशनल थकान हो सकती है।

3. थायरॉइड हार्मोन में गड़बड़ी

कई महिलाएं पोस्टपार्टम थायरॉइडाइटिस का शिकार होती हैं, जिससे वजन बढ़ना, बाल झड़ना, और मूड में बदलाव होता है।


😔 प्रसव के बाद मानसिक संघर्ष

मानसिक बदलाव जो अक्सर नजरअंदाज़ होते हैं:

  • “मैं खुद को पहचान नहीं पा रही” वाली भावना
  • अकेलापन या सामाजिक कटाव
  • अपराधबोध (“मैं एक अच्छी माँ नहीं हूँ”)
  • अचानक गुस्सा या अश्रुपूरित स्थितियाँ

💡 यह सभी बदलाव “पोस्टपार्टम ब्लूज़” या गंभीर स्थिति में “पोस्टपार्टम डिप्रेशन” का हिस्सा हो सकते हैं।


🌿 आयुर्वेद की दृष्टि से मातृत्व संक्रमण

आयुर्वेद के अनुसार, प्रसव के बाद शरीर अत्यधिक वात दोष से ग्रसित हो जाता है। वात का असंतुलन ही अधिकतर मानसिक और शारीरिक समस्याओं का कारण होता है।

“प्रसव के बाद के 42 दिन – माँ की ज़िंदगी को सँवारने या बिगाड़ने वाले सबसे महत्वपूर्ण दिन होते हैं।”

🌿 मुख्य आयुर्वेदिक समाधान:

1. अश्वगंधा चूर्ण

  • तनाव और थकान दूर करता है
  • मानसिक स्थिरता प्रदान करता है

2. शतावरी कल्प

  • प्रजनन अंगों की मरम्मत करता है
  • स्तनपान में सहायक

3. दशमूल क्वाथ

4. अभ्यंग (तेल मालिश)

  • तिल या नारायण तेल से रोजाना स्नान पूर्व मालिश
  • वात संतुलन और मानसिक सुकून के लिए सर्वोत्तम

5. गर्म पानी और हल्का पाचन आहार

  • आंतों की सफाई
  • पाचन तंत्र मजबूत होता है

🧘‍♀️ मातृत्व संक्रमण के लिए योग और प्राणायाम.

  • भ्रामरी प्राणायाम: तनाव कम करता है
  • वज्रासन: पाचन सुधारता है
  • शवासन: मानसिक सुकून देता है
  • सूक्ष्म व्यायाम: शरीर की थकावट और अकड़न दूर करता है

🫂 सामाजिक और मानसिक समर्थन की भूमिका

माँ बनना सिर्फ एक शारीरिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि मानसिक यात्रा भी है। इसलिए:

  • परिवार को चाहिए कि वह माँ को मानसिक सहयोग दे
  • नई माताओं के लिए सपोर्ट ग्रुप्स या काउंसलिंग एक अच्छा उपाय हो सकते हैं
  • “तू कमजोर नहीं है, तू एक नई ज़िंदगी को जन्म दे चुकी है” – इस सोच को अपनाना ज़रूरी है

📌 निष्कर्ष

मातृत्व संक्रमण यानी “Matrescence” एक स्वाभाविक लेकिन कम समझा गया बदलाव है। यदि इसे समय रहते समझा जाए और आयुर्वेद, योग, पोषण और मानसिक सहयोग के ज़रिए संभाला जाए – तो हर महिला इस चरण को आत्मविश्वास, ऊर्जा और संतुलन के साथ पार कर सकती है।


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